(H2O) जल चिकित्सा:
क्षिति पावक जल गगन समीरा:
पंचतत्व रचित अधम शरीरा:
मानव शरीर उपयुक्त पंच तत्वों से मिलकर बना है जिनमें जल तत्व प्रधान है क्योंकि मानव शरीर का 70% भाग जल से बना है। शरीर में इस जल तत्व का समयोग स्वस्थ एवं इस तत्व की विषम अवस्था रोगों को उत्पन्न करती है। विनसेज प्रिसिनज सेबेस्टियन नीप एवं लुई कुने आदि प्राकृतिक चिकित्सकों ने जल चिकित्सा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। फादर नीप द्वारा रचित पुस्तक ' My Water Cure ' जल चिकित्सा की प्रसिद्ध पुस्तक है। प्रसिद्ध प्राकृतिक चिकित्सक डॉ.लिंडलहार के अनुसार बुखार ठीक करने में अन्य औषधियों की तुलना में इन औषधियों का प्रयोग करने से बुखार 10 दिन में ठीक होता है, तो वहीं जल चिकित्सा के प्रयोग (गीली चादर लपेट), एनिमा एवं अन्य प्रयोगों द्वारा बुखार एक दिन में ठीक हो जाता है।
रक्त परिसंचरण तंत्र पर जल चिकित्सा के प्रभाव:
शरीर में जल तत्व की कमी से रक्त गाढ़ा होने से रक्तवाहिनियों में इसके संचरण में बाधा उत्पन्न होने से रक्त चाप संबंधी ह्रदय रोग उत्पन्न होने लगते है। जल चिकित्सा के अंतर्गत ऊषापान, एनिमा, कटिस्नान(गर्म- ठंडा), चादरलपेट, पेट छाती की लपेट आदि क्रियाओं को नियमित करने से रक्त में शुद्धिकरण की क्रिया तीव्र होती है। रक्त में ऑक्सीजन व कार्बन डाई ऑक्साइड को ग्रहण करने एवं छोड़ने की क्षमता अच्छी बनी रहती है।
पाचन तंत्र के रोग:
जल तत्व की कमी से पाचन तंत्र के अनेक रोग - आंतों की शुष्कता, कब्ज, अपच, भूख नहीं लगना, पेट दर्द, गैस, यकृत विकार, मधुमेह आदि रोग पनपते हैं। इन रोगों में जल चिकित्सा के गर्म एवं ठंडे जल का प्रयोग करने से तंत्र की क्रियाशीलता बढ़ती है एवं रोगों से मुक्ति मिलती है।
उत्सर्जन तंत्र पर जल चिकित्सा का प्रभाव:
जल चिकित्सा द्वारा जल तत्व की पर्याप्त मात्रा होने पर वृक्कों की क्रियाशीलता बनी रहती है एवं विजातीय पदार्थों का निष्कासन हो जाता है। पथरी, त्वचा विकार आदि रोगों से मुक्ति मिलती है।
अस्थि एवं पेशीय तंत्र पर जल चिकित्सा का प्रभाव:
मानव अस्थि का 25% भाग जल तत्व से बना होता है। जल तत्व की उपस्थिति के कारण अस्थियों में लचीलापन एवं दृढ़ता बनी रहती है। जल तत्व की कमी होने पर मांसपेशियों में शक्तिहीनता, कड़ापन,पेशियों संबंधी अन्य रोग - पेशियों में दर्द, गठिया एवं आर्थराइटिस इत्यादि रोग हो जाते हैं।
शरीर के तंत्रिका तंत्र पर जल चिकित्सा का प्रभाव:
यह तंत्र मकड़ी के जाले के समान संपूर्ण शरीर में फैला रहता है जिसके अंतर्गत विभिन्न तंत्रिकाएं जल तत्व के माध्यम से बाहरी वातावरण से संवेदनाओं एवं प्रेरणाओं को ग्रहण करती हैं। जल चिकित्सा के अंतर्गत ठंडे जल के प्रयोग, रीढ़ स्नान, चादर लपेट द्वारा तंत्रिकाओं को बल मिलता है। गर्म जल के प्रयोग, गर्म - ठंडा कटिस्नान या रीढ़ स्नान द्वारा रक्त संचार तीव्र होने से तंत्रिकाओं की क्रियाशीलता बढ़ती है। मस्तिष्क विकार में भी जल चिकित्सा के विभिन्न प्रयोगों से अभूतपूर्व लाभ मिलता है।
जल-चिकित्सा के साधन :
मिट्टी चिकित्सा:
पंच भूतात्मक प्राकृतिक चिकित्सा का मूल आधार माँ पृथ्वी ही है। उपनिषद के अनुसार ऐसा भूताना पृथ्वी रस: पृथ्वी को रस अन्न भी कहा गया है। अन्न अधातु से उत्पन्न है, जिसका अर्थ खाया जाने वाला होता है। जो पृथ्वी सम्यक उपयोग करते हैं, पृथ्वी उनकी रक्षा करती है। खाये जाने वाले सभी पदार्थ पृथ्वी से उत्पन्न होते हैं।
भगवान श्री कृष्ण ने 'अन्नाद भवन्ति भूतानि' समस्त प्राणी पृथ्वी से ही उत्पन्न होते हैं। पृथ्वी पालन पौषण एवं स्वस्थ करती है पृथ्वी हिन्य महाऔषध है मिट्टी में अनेक प्रकार के खनीज, लवण, जैविक सल्फर, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, मिट्टी प्रबल प्राकृतिक एन्टीबायोटिक्स है। एडोल्फ जुस्ट ने अपनी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक 'रिटर्न टु नेचर' में मिट्टी को प्राणदायक विद्युत चुम्बकीय शक्तियों का पूर्ण विवरण दिया है।
इज़राइल के वैज्ञानिक मिट्टी के प्रयोग से एमिनो एसिड की अत्यन्त सरल नन्ही शृंखला बनाने में सफल हुऐ है जो प्रोटीन की बड़ी शृंखला की पहली सीढ़ी है। अत: प्राणी जगत में स्वास्थ्य सम्बर्दन में मिट्टी की अत्यंत प्रभावी भूमिका है मिट्टी एन्टीबायोटिक्स है।
प्राकृतिक चिकित्सालय बापू नगर जयपुर में "मिट्टी, पानी, धूप, हवा सभी रोगो की यही दवा" पर लगभग 75 वर्षो से कार्य कर रहा है एवं लाखो साधको को स्वस्थ एवं निरोग किया है मिट्टी में सभी प्रकार के खनीज लवण सल्फर मेग्नीशियम आदि तत्व जो शरीर को निरोग बनाने में काम करता है मिट्टी दर्दनाशक गुण, दुर्गन्ध नाशक, विद्युत चुम्बकीय गुण, पितोत्सारक, ज्वार नाशक, अवसाद नाशक एन्टीबायोटिक ,विषसोधक कब्ज, नापूक धाव को शीघ्र भरते है।
मिट्टी से सभी प्रकार के चर्म रोग : उदर रोग, अपच, वायुविकार, आव, कोलाइटिस, अल्सर, आंतो में सूजन, मोटापा, उच्च-रक्तथाप, मानसिक विकार,अनिद्रा, तनाव, सिरदर्द, माइग्रेन, महिला रोग - मासिक धर्म, स्वेत प्रदर, बांझपन आदि सभी प्रकार का रोग मिट्टी चिकित्सा से ठीक किये जाते है।
नामिकेन्ह मणिपुरक सौरचक्र को जागृत करता है मिट्टी, वात, पित्त, कफ-दोष, अग्नि एवं धातुओ मे संतुलन करने मे सहायक रासायनिक यौगिको से भरपूर हर प्रकार के औषधीय गुण मिट्टी मे पाये जाते है मिट्टी के प्रयोग से रोग कूप खुल जाते है खून उपरी सतह पर दौड़ने लगता है , विजातिय पदार्थ बाहर निकल जाता है। मिट्टी पट्टी से पेट की बीमारियो के साथ पेट की गर्मी शांत होती है। मिट्टी पट्टी पेट, आँख, हाथ, पैरो पर लैप, घुटनो पर पुल्टिस पूरे शरीर पर लैप मडबाथ।
मिट्टी पट्टी पेट:- 30 मिनिट लगानी चाहिए एवं मिट्टी का प्रयोग करते समय पुरा ध्यान अपने शरीर के अंगो पर ध्यान होना चाहिए। पेट की गर्मी शांत ओर पेट के रोग ठीक करता है।
मडबाथ:- मडबाथ 45-60 मिनिट तक लगाना चाहिए एवं मडबाथ लगाकर धूप में बैठना या खड़े होना चाहिए जिससे शरीर मे विटामिन डी की पूर्ति करता है। सभी प्रकार के चर्मरोग, मोटापा उच्चरक्तचाप ठीक करता है |
आँखों पर मिट्टी:- आँख की रोशनी तेज होती है आँखों में खुजली, आँख लाल हो जाती है एवं आँख की अनेक बीमारियों में फायदा होता है |
चहरे पर लेप :- चेहरे को सौन्दर्य बनाने एवं चमकदार बनाता है चेहरे के फोड़ा फुन्सी दूर करता है | मिट्टी चिकित्सा से सभी प्रकार के चर्म रोग, पेट के रोग, कब्ज, वायुविकार, आँख, कोलाइटिस अल्सर, आंतो की दुबर्लल, मोटापा, उच्चरक्तचाप मानसिक रोग, अनिद्रा, तनाव, सिरदर्द है |
महिला रोग :- मासिक धर्म, श्वेत प्रदर, बांझपन आदि विकारो मे मिट्टी चिकित्सा बहुत कारगर होती है |
मिट्टी प्रकार :-
(1) काली मिट्टी (2) लाल मिट्टी (3) बालू मिट्टी (4) समुद्र किनारे की मिट्टी (5) मुल्तानी मिट्टी (6) दोमट मिट्टी
मिट्टी उपचार :- पेट पर मिट्टी पट्टी, आँख पर मिट्टी पट्टी, सिर पर पट्टी
लेप :- चहरे पर लेप, हाथ पैरो पर लेप
मडबाथ :- पुरे शरीर पर मिट्टी लेप
पुल्टिस :- घुटनो, कमर, कंधे एवं अन्य दर्द के लिए
लाभ :- पेट की मिट्टी पट्टी पेट की गर्मी शान्त करती है, आंतो की सूजन कम करती है, पेट की कब्ज, जलन ठीक करती है, उच्चरक्तचाप को ठीक करता है, माईग्रेन ठीक होता है, सभी प्रकार चर्मरोग, एनिमा, खाज खुजली, सोराइसिस, सभी रोगों में फायदा करती है |
प्राकृतिक चिकित्सक के परामर्श अनुसार उपचार एवं मिट्टी का प्रयोग करना चाहिये |
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Must explain to you how all this mistaken denouncing pleasure & praising