ताड़ासन
पीठ के बल सीधे लेट जाएँ। दोनो हाथो को कंधो के समानान्तर सिर की ओर ले जाइये। दोनो हाथो की अंगुलियों को एक दूसरे मे फंसाकर लम्बा गहरा श्वास लीजिये। अब श्वास को भीतर की ओर रोकते हुए नाभि से ऊपर के सारे शरीर को ऊपर की ओर व नाभि से नीचे के सारे शरीर नीचे की ओर अर्थात् अपने शरीर को दो भाग में बाटते हुए एक दूसरे की विपरीत दिशा मे खिचें। दोनो पैरों को आपस में मिलाकर रखना है। अपनी शक्ति के अनुसार श्वास को भीतर रोकते हुए इस आसन को करे। उसके पश्चात श्वास छोड़ते हुए सारे शरीर को ढीला छोड़ दीजिए एवं श्वासन में आराम करें।
आसन के लाभ
सुप्त पवन मुक्तासन
सबसे पहले हमें सुप्त पवन मुक्तासन का आशय समझ लेना चाहिए। सुप्त का अर्थ है लेटे हुए। अर्थ- वायु हवा या बात से है। मुक्त का आशय छुटकारा या मुक्ति पाने से है। इस प्रकार पवन मुक्तासन का आशय किसी क्रिया या आसन से है जिसके करने पर शरीर के प्रत्येक अंग में दूषित पवन और उससे उत्पन्न होने वाले रोग से मुक्ति मिले। मुलायम दरी या कबल की चार परतें करते हुए बिछाकर उस पर पीठ के बल लेट जाइये। दोनो हाथो को जंघाओ के पास लाकर भूमि पर रख दीजिए दांये पैर को घुटने से मोड लीजिए दोनो हाथो की अंगुलिया आपस में फसाकर रखे। दोनो हाथ से घुटने को पकड़े। अब लम्बा गहरा श्वास ले तथा श्वास को छोड़ते हुए जंघा का दबाव पेट पर डालते हुए माथा या ठुड्डी दाये पैर के घुटने के लगा दीजिए। ध्यान रहे बायां पैर सीधा रखे और दोनो पैरो के पंजो को सामने खिंच कर रखे। कम से कम 5 से 10 सेकेंड इस स्थिति में रुकिए। अब घुटनो को छोड़ते हुए दायें पैर को धीरे-धीरे धरती पर लाकर रखे। इसी दौरान श्वास लेते हुए सिर को भी धरती पर लाकर रखे। थोड़ी देर तक श्वास की स्थिति सामान्य होने तक आराम करें। इसके बाद अब दांयी टांग को बिल्कुल सीधा रखते हुए उपरोक्तानुसार बायें पैर से वही क्रिया पूरी करें। इसके बाद सीधा लेटते हुए 5 से 10 सेकेंड आराम करें। अब दोनो पैरो को घुटनो से मोड़ लीजिए। लम्बा गहरा श्वास लें। हाथो को घुटनो के ऊपर कोहनी तक लपेट लीजिए। अब श्वास छोड़ते हुए दोनो घुटनो का दबाव पेट पर डालते हुए माथा या ठुड्डी दोनो घुटनो के बीच में लगा लीजिये। दोन पैर के पंजो को सामने खींच कर रखे। 5 से 10 सैकड इस स्थिति में रुक अब श्वास लेते हुए दोनो हाथो को ढीला करते हुए लकड़ी के घोड़े की तरह लुढ़िकिये। यथाशक्ति करें। इसके पश्चात दोनो पैरो को धरती पर लाकर सीधा रखें। पीठ के बल चित लेटते हुए 5-10 सेकेंड आराम करें।
सावधानी - जिन्हें स्पॉन्डिलाइटिस व कमर दर्द की शिकायत है वे लोग सिर को ऊपर की ओर नहीं उठाएं।
आसन के लाभ
मर्कटासन
पीठ के बल चित लेट जाइये। दोनो हाथो को 180 डिग्री कोण में इस प्रकार फैलाएं कि हथेलियाँ धरती को स्पर्श करे। दोनो पैरो के बीच 1 से 1.5 फीट तक का अंतर रखते हुए घुटना से इस प्रकार मोड़े कि दायें पैर की ऐड़ी दायें नितम्ब को एवं बायें पैर की ऐड़ी बायें नितम्ब को स्पर्श करें। श्वास को भरते हुए दोनो पैरों को पहले बायीं ओर ले जाना है एवं गर्दन को विपरीत दिशा में दायीं ओर मोड़ना है। इस अवस्था में दोनो हाथो की मुठ्ठियों इस प्रकार बंद करनी है कि अंगूठे भीतर की ओर रहे। इसके बाद श्वास छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आते हुए वापस मुठ्ठियाँ खोलनी है। अब यही क्रिया पैरो को दायीं ओर एवं गर्दन को बायीं ओर मोडते हुए करना है व मुठ्ठियों बंद करनी है। अपने शरीर को ऐसे निचोड़ जैसे तौलिया निचोड़ते है। बायीं ओर पैरो को ले जाते समय बायें घुटने को भूमि पर तथा दायें घुटने को बायें पैर की ऐडी के साथ सटाइये। इसी प्रकार जब पैरो को दायीं ओर ले जाए तो दायें घुटने को भूमि पर तथा बायें घुटने को दायें पांव की ऐडी क साथ सटाइये। श्वास को भतर की ओर रोकते हुए सरलता से जितनी बार कर सके, करे उसके पश्चात पीठ के बल लेटते हुए आराम करें।
आसन के लाभ
सेतुबंधासन
पीठ के बल सीधे लेट जाइए। दोनो पैरो को आपस में मिलाइए। अब अपने स्कंधी एवं एडियो के बल पर पूरे शरीर को ऊपर की ओर उठाएं। कोहनियो को मोड़ते हुए हथेलियों से कमर का सहारा लेते हुए शरीर की आकृति को सेतु की भाँति बना लीजिए। श्वास को भरते हुए शरीर को ऊपर की ओर उठाना है व श्वास | को छोड़ते हुए नीचे की ओर लाना। है। जब शरीर को ऊपर की ओर उठाए तो कोहनियो के बल पर हथेलियों का सहारा लेते हुए अपने शरीर को ऊपर की ओर उठाकर यथासंभव यथासंभव रुकने का प्रयास करें।
आसन के लाभ
चक्रासन
पीठ के बल चित लेट जाइये। दोनो पैरो को घुटने से इस प्रकार मोड़ें कि दायें पैर की ऐड़ी दायें नितम्ब के पास व बायें पैर की एड़ी बायें नितम्ब के पास आ जाये। दोनो पैर में 6 इंच का अंतर रखे। दोनो हाथो की हथेलियो को कंधो के पास लाकर धरती से इस प्रकार स्पर्श करें कि कोहनियों का रुख आसमान की ओर एवं हाथो की अंगुलियों का रुख एडियों की और अब दोनो तल पर व हथेलियों के बल पर अपना सारा शरीर ऊपर उठा लीजिए। पेट को ऊपर उठा सकते है, उठाएं। गर्दन को लटकी हुई रखे व भीतर की ओर मोड़ते हुए सिर को कमर लगाने का प्रयास करें। दोनो हाथो को बिलकुल सीधा कर दीजिए। पैरो में जितना कम फासला होगा, जाना आसन अछा होगा। इस अवस्था में एक मिनट तक श्वासोच्छवास जारी रखते हुए रुकिए। उसके पहचानीचे आने से पहले श्वास को फेफड़ो में भरकर धीरे-धीरे शरीर को भूमि पर इस प्रकार रखें कि पीठ के बल चित लेटी हुई अवस्था में आपका शरीर आ जाए। इसके बाद सामान्य गति से श्वास ले एवं छोड़े।
आसन के लाभ
सर्वागासन
इस आसन में शरीर के सभी अंगों की पुष्टि होती है। इसलिए इसे सर्व अंग आसन कहते है ।। सर्वप्रथम पीठ के बल चित लेट जाइये। दोनों हथेलियों को जंघाओं के पास लाकर धरती से स्पर्श कर दीजिए। अब श्वास भरते हुए धीरे-धीरे दोनों पैरों को मिलाकर ऊपर की ओर उठाइये। पैरों का आहिस्ता आहिस्ता बिना सिर उठाये 15 डिग्री 30 डिग्री. 45 डिग्री, 60 डिग्री. 75 डिग्री व 90 डिग्री के कोण में लाएँ। अब दोनों हाथों से कमर को सहारा देते हुए कधों तक के शरीर को इतना ऊपर उठा लीजिए कि तुड्डी कंठकूप से लग जाए। दोनों कोहनियों को आपस में नजदीक करते हुए धरती से लगाकर रखें। श्वास की स्थिति को सामान्य रखें। इस अवस्था में शरीर हिले-डुले नहीं। शरीर का भार कंधों रखें न दोनों हाथों पर दोनों हथेलियों से कोहनियों को बनाते हुए केवल शरीर को सहारा देना है। पैरों के पंजों को ऊपर की ओर खींचकर रखें। पैरों के अंगूठों पर दृष्टि रखे। इस आसन का अभ्यास शुरू में 1 मिनिट से प्रारंभ करके 5 से 10 मिनिट तक करने का प्रयास करें। अब दोनों हाथों का सहारा लेते हुए कमर एवं नितम्ब को धीरे-धीरे धरती पर रखें। इसके पश्चात् बिना सिर उठाए दोनों पैरो को मिलाकर धीरे-धीरे धरती पर ले आयें। किसी प्रकार की कोई जल्दबाजी न करें इस आसन को करने के पश्चात मत्स्यासन करना अनिवार्य है। मत्स्यासन करने के बाद भारत में विश्वास करे।
आसन के लाभ
हलासन
सबसे पहले पीठ के बल चित्त लेट जाइये। दोनों पैरों को आपस में मिलायें। दोनों हथेलियों को जधाओं के पास लाकर हथेलियों को धरती से स्पर्श कर दें। अब धीरे-धीरे श्वास लेते हुए दोनों पैरों को ऊपर उठा लीजिए। ध्यान दीजिए कि यह क्रिया करते समय पैरों को नहीं मोडना है व हाथों को एवं सिर को भी नहीं उठाना है। पीठ को नहीं मोड़े। अब आप सर्वांगासन की स्थिति में आ चुके हैं। अब धीरे-धीरे पैरों को सिर की ओर ले जाइये एवं इस दौरान धीरे-धीरे श्वास छोटे दोनों पैरों की अंगुलियों को सिर की ओर ले जाकर धरती से स्पर्श कर दें। शरीर की स्थिति हल के आकार की हो जायेगी। दोनों पैर घुटने आपस में मिले हुए एवं बिल्कुल सीधे रखे श्वास छोड़ते हुए जब आपके पैरों की अंगुलियों धरती से स्पर्श कर जाएं तो यह आसन की पूर्ण अवस्था होगी। अब श्वास को सामान्य स्थिति में करतेहुए इसी अवस्था में 30 सेकण्ड तक सके। अपनी ठुड्डी को फटकूप से लगाकर रखें। 30 सैकण्ड तक रुपने के पश्चात् धीरे-धीरे दोनों पैरों को उठाकर बिना झटका दिए उन्हें सरल भाव से धरती पर लाकर रखे। इस दौरान सिर नहीं उठायें। अब दोनों हथेलियों का रूख आसमान की ओर कर दे व शवासन विभाग करें।
आसन के लाभ
मत्स्यासन
सर्वप्रथम पद्मासन में बैठ जाइये। दोनों हथेलियों एवं कोहनियों का सहारा लेते हुए भूमि पर चित्त लेट जाइये, लेकिन पैरों की स्थिति पद्मासन जैसी ही होगी। अब दोनों हथेलियों को कंधों के पास लाकर धरती पर इस प्रकार रखें कि कोहनियों का रूख आसमान की ओर रहे। दोनों हथेलियों का सहारा लेते हुए पुट्ठों से ऊपर कंधों तक का शरीर उठाकर गर्दन को भीतर की और इस प्रकार से मोड़े कि शरीर, पुट्ठों और सिर के ऊपरी हिस्से के बल पर रहे। अब दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगूठों को पकड़े। बायें हाथ से दायें पैर के व दायें हाथ से बायें पैर के अंगूठे को पकड़ते हुए दोनों हाथों की कोहनियों की धरती से स्पर्श कर दीजिए। गहरे श्वास लें एवं छोड़े। सर्वांगासन करने के तुरन्त पश्चात् मत्स्यासन करना अनिवार्य है। जो लोग पद्मासन में यह आसन नहीं कर सकते हैं तो वे सुखासन में बैठकर या लेटकर भी यह आसन कर सकते है। कम से कम 10 से 15 सैकण्ड तक इसका अभ्यास करें व धीरे-धीरे समय बढ़ाते जायें।
आसन के लाभ
भुजंगासन
भुजंग का आशय सर्प से होता है। यह आसन करते समय जिस प्रकार सर्प अपने फन को उठाता है, उसी प्रकार अपने शरीर की स्थिति करनी है।
सर्वप्रथम पेट के बल लेट जाइये। माथा धरती को स्पर्श कर दें। दोनों पैरो को मिलाते हुए बिल्कुल सीधा कर लीजिए। दोनों पैरों के पंजों को पीछे की ओर खींच दीजिए। बायी हथेली को ठुड्डी के पास लाकर इस प्रकार रखें कि हथेली धरती को स्पर्श करे तथा दायी हथेली उसके ऊपर लोकर रख दें। अब श्वास भरते हुए नाभि के ऊपर के सारे शरीरको ऊपर उठा लीजिए। कोहनियों को बिल्कुल सीधा कर दें और ऊपर आसमान की ओर देखें। श्वास को अन्दर की ओर रोकते हुए यथाशक्ति रूकें। तत्पश्चात् श्वास छोड़ते हुए अपने माथे को हाथों पर लाकर रखें। अब हथेलियों की स्थिति को बदलते हुये फिर से वही किया करें। चार से छह बार तक यह आसन किया जा सकता है।
तिर्यक भुजंगासन इस आसन की विधि पुस्तक के 17 नम्बर पृष्ठ पर दी गई है।
आसन के लाभ
शलभासन
शलभ से आशय टिड्डी से होता है। यह आसन करते समय शरीर की मुद्रा टिड्डी जैसी दिखाई। देती है इसी कारण इसे शलभासन कहा जाता है।
पहली क्रिया - दोनों पैरों को मिलाकर बिल्कुल सीधा कर लीजिए। ठुड्डी को धरती सेस्पर्श कर दें। दोनों हाथों की हथेलियों को जंघाओं के नीचे रखे। अब लम्बा व गहरा श्वास भरते हुए दाएं पैर को धरती से 15 इंच ऊंचाई पर उठा लीजिए। यथासंभव रुकते हुए धीरे-धीरे श्वास को छोड़ते हुए दाएं पैर को धरती पर लाकर रख दें। यही क्रिया बाए पैर से करें। अब दोनों पैरों को एक साथ उठाते हुए यही क्रिया करें। दोनों पैरों को एक साथ उठाते वक्त भी ठुड्डी को भूमि से लगाकर रखे व पैरों को मोड़े नहीं।
दूसरी क्रिया - पेट के बल सीधा लेटें। अब अपने दाए हाथ को सामने की ओर लाते हुए हथेली को भूमि से सटा दें। इस समय आपका दाया हाथ आपके कान व सिर से सटा रहेगा और आपका बाया हाथ पीछे की ओर लाते हुए कमर पर रख दें। इस समय आपके दोनों पैर मिले रहेंगे। अब श्वास को भरते हुए दायें हाथ और बायें पैर को ऊपर की ओर उठा लें। श्वास को भीतर की ओर रोकते हुए सरलता से यथाशक्ति रुके। तत्पश्चात् धीरे-धीरे श्वास को छोड़ते हुए अपने दाएं हाथ व बाएं पैर को भूमि पर रख दीजिए। हाथों एवं पैरों की स्थिति को बदलते हुए यही आसन करें।
तीसरी क्रिया - पेट के बल सीधे लेट जाइये। दोनों पैरों को आपस में मिलाकर रखें। दोनों हाथों को पीछे कमर तक लाकर रखे और बाएं हाथ से दायें हाथ की कलाई को पकड़ लें। दायें हाथ की मुट्ठी इस प्रकार बंद रहे कि अंगुठा मुट्ठी को भीतर रहे। श्वास को भरते हुए नाभि से ऊपर के शरीर को ऊपर की ओर उठा कर ऊंचाई की ओर देखें। यथासंभव रुके। उसके बाद धीरे-धीरे श्वास को छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आ जाए। पाँच बार इस क्रिया को करें।
आसन के लाभ
धनुरासन
इस आसन को करते समय नाभि के आधार पर सारे शरीर की स्थिति धनुष के आकार जैसी हो जाती है, इसी कारण इस आसन को धनुरासन कहा जाता है।
इस आसन को करने के लिए सर्वप्रथम पेट के बल लेट जाइये। दोनों पैरों को बिलकुल सीधा रखे। दोनों हाथों की बगल में सटाकर हथेलियों को जंघाओं तक ले जाइये। अब दोनों पैरों को घुटनों से इस प्रकार मोड़े कि दोनों ऐडियाँ नितम्ब के पास आ जाएँ। अब दोनों हाथों से दोनों पैरों के टखनों को पकड़िये नाभि को आधार बनाते हुए दोनों हाथों से दोनों पैरों को खींचते हुए सारे शरीर की इस प्रकार से ऊपर उठाएँ कि आपका शरीर धनुष के समान लगे। श्वास को भीतर लेकर रोकते हुए दोनो पैरो व सिर को ऊपर उठाना है। अपना सीना फुलाकर रखें। दोनों हाथों से पैरों को पकड़कर ऊपर खींचने पर सीना स्वत ही ऊपर की ओर उठ जायेगा। सरलता एवं सहज भाव से आन्तरिक कुम्भक करते हुए यथाशक्ति रूके। इसके पश्चात् धीरे- धीरे श्वास छोड़ें एवं इसी अवस्था में रहते हुए लकड़ी के घोड़े के समान आगे-पीछे हिलिए। इस दौरान सिर को ऊपर ले जाते समय श्वास लीजिए व ठुड्डी को धरती के पास लाते समय श्वास छोडिये। इसके पश्चात् दोनों पैरों के अन्तर को कम करते हुए। दायें-बायें हिलिए सरलता से एवं यथाशक्ति यह आसन करने के पश्चात् बालकासन (शिथिलासन) में विश्राम करें।
आसन के लाभ
पश्चिमोत्तानासन
इस आसन को करते समय पश्चिम (पीठ) को तान दिया जाता है। इसीलिए इसे पश्चिमोत्तानासन कहते है। इस आसन को उग्रासन भी कहा जाता है। सर्वप्रथम भूमि पर कम्बल या दरी बिछाकर बैठ जाइये। दोनों पैरों को मिलाकर सामने की ओर लम्बे कर लीजिए। धीरे- धीरे लम्बा गहरा श्वास लेते हुए दोनों हाथों को क्यों के समानान्तर ऊपर ले जाइये। अब धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगठे पकड़ते हुए माथा घुटनों से लगा दे व पेट को संकुचित कर लें। दोनों हाथों की कोहनियों को धरती से स्पर्श कर दें। बाह्य कुम्भक करते हुए 30 सैकण्ड तक इसी अवस्था में रुकें। यह आसन करते समय घुटने ऊपर न उठायें। यदि आपका माथा घुटनों से नहीं लग रहा है तो श्वास लेते हुए बैठें एवं श्वास छोड़ते हुए पेट चिपकाते हुए आगे पीछे हिलकर धीरे धीरे लचक पैदा करते हुए माथा घुटनो से लगाने का अभ्यास करें। प्रतिदिन अभ्यास करने से 5- 7 दिन में माथा घुटनों से लगने लगेगा। आसन करने के पश्चात् पैरों में चोड़ा अन्तर करें। उन्हें ढीला छोड़ते हुए दोनों हथेलियों को पीठ की ओर रखते हुए विश्राम करें।
आसन के लाभ
जानुशिरासन (महामुद्रा)
इस आसन को करते समय जानु (घुटने) से सिर लग जाता है। इसीलिए इसे जानुशिरासन कहा जाता है। यह आसन भी पश्चिमोत्तासान जैसा ही है। मुख्य अन्तर केवल इतना है कि इस आसन में केवल एक पैर को ही सामने की और लम्बा किया जाता है। इस आसन को करते समय पहले दोनों पैरों को सामने की ओर लम्बा कर लीजिए। अब बायें पैर को घुटने से इस प्रकार मोडे कि बायें पैर की ऐडी दायीं जंघा मूल के पास आकर सीवनी (गुदा एवं जननेंन्द्रिय के बीच के स्थान को सीवनी कहते है) स्थान को स्पर्श करे। दायें पैर को बिल्कुल सीधा रखते हुए धीरे-धीरे श्वास लेते हुए दोनों हाथों को ऊपर की ओर ले जाइये। अब श्वास छोडते हुए माथा दायें पैर के घुटने से लगा दें एवं बायें हाथ से दायें पैर का अंगूठा पकड़ लें। दाये हाथ को कमर से इस प्रकार लपेटे कि दायी हथेली बायी जंधा के पास आ जाए। बाह्य कुम्भक करते हुए 15 सैकण्ड तक इसी अवस्था में रूके। इसी प्रकार हाथों एवं पैरों की स्थिति को बदलते हुए यही आसन करें। इसके पश्चात् दोनी पैरों को सामने की ओर लम्बा कर उनमें 1 से 1.5 फीट का अन्तर करें। दोनों हथेलियाँ पीठ की ओर ले जाकर धरती से स्पर्श कर दे एवं उनका सहारा लेते हुए विश्राम करें।
आसन के लाभ
अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन
भगवान शंकर के शिष्य योगी मत्स्येन्द्रनाथ ने सर्वप्रथम हठयोग के साधको को यह आसन सिखाया उनके द्वारा सिखाए गए आसन का यह आधा आसन है। इसीलिए इसे अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन कहा जाता है।
दरी या कम्बल भूमि पर बिछाकर पैरो को सामने की ओर फैलाते हुए बैठ जाइये। दायें पैर को से इस प्रकार मोड़े कि दायें पैर की ऐडी सीवनी (गुदा और जननेन्द्रिय के बीच का स्थान) को स्पर्श करें। बाया पैर दायें घुटने के ऊपर से ले जाते हुए भूमि पर इस प्रकार रखे कि बायें पैर का पंजा दाये घुटने से आगे न जाये व चाया घुटना छाती के मध्य सामने की ओर बिजानुसार खड़ा रहे। अब बायें घुटने पर दायी बगल | दिये। दाये हाथ को बायें घुटने के ऊपर से ले जाकर | हाथ से बाए पैर का अंगूठा पकड़े बाए हाथ को इस प्रकार लपेटे कि बाए हाथ की हथेली दायी धाको स्पर्श करें। पीठ को सीधा रखते हुए गर्दन को । घुमाकर तुड्डी को बायें कंधे की ओर ले जाइये। बायें पैर का अंगूठा, बायें पैर का घुटना, दाया कथा, ठुड्डी और बच कथा एक सीध में होने चाहिए। इन अंगों को एक रेखा में लाने के लिए शरीर को जितना मोडेंगे, उतना ही लाम होगा। यह आसन करते समय कमर को सीधी रखें. झुकाए नहीं। यही किया दूसरी ओर से भी करें। यह असम 5 सैकण्ड से 45 सैकण्ड तक किया जा सकता है।
आसन के लाभ
गोमुखासन
यह आसन करते समय शरीर की आकृति गाय के मुख जैसी बन जाती है, इसीलिए इसे गोमुखासन कहा जाता है।
दरी या कम्बल बिछाकर पैरों को सामने की ओर फैलाते हुए बैठ जाइये। बायें पैर को घुटने से इस प्रकार मोडिये कि बायी ऐडी दाये नितम्ब को स्पर्श करें। दायें पैर को घुटने से इस प्रकार मोठे कि दायी ऐडी बायें नितम्ब के पास आए। दोनों पैरों की ऐडियां एक दूसरे के विपरीत दिशा में नितम्ब से सटाकर रखें। दाया हाथ ऊपर की ओर से पीठ की तरफ ले जाते हुए कोहनी से नीचे की ओर मोड़े। हाथ नीचे की ओर से पीठ की तरफ ले जाते हुए कोहनी से ऊपर की ओर मोड़े। दायें हाथ की अगुलियों को नीचे की ओर थ बायें हाथ की अंगुलियों को ऊपर की ओर करते हुए आपस में पकड़ लें। शरीर का ऊपरी भाग गर्दन व सिर को सीधा रखते हुए दृष्टि सामने की ओर सीधी रखें। श्वासको भीतर की ओर रोक । 30 से 60 सैकण्ड तक इसी स्थिति में रूके एवं पैरा की स्थिति को क्रमश बदलते हुए दूसरी ओर से आसन को करें।
आसन के लाभ
वज्रासन
इस आसन को वज्रासन दो कारणों से कहा जाता है- (1) वज का अर्थ है कठोर एवं संख्त. (2) यह वज्र नाड़ी पर सीधा प्रभाव डालता है जो कि गुदा और अण्डकोष के बीच में होती है।
घुटनों को पीछे की ओर मोड़कर दोनों पैरों पर इस प्रकार बैठे कि नितम्ब ऐड़ी पर टिक जाये। दोनों पैरों के - अंगूठे आपस में मिला लीजिए। पैरों की ऐडियों को एक दूसरे की विपरीत दिशा में फैला लीजिए। दोनों हथेलियों को घुटनों पर लाकर रखे। दोनों घुटनों को आपस में मिलाकर भूमि से स्पर्श करे। मेरूदण्ड, गर्दन में सिर को एक रेखा में रखें। प्रारम्भ में यह आसन करने पर जाओ पर खिचाव पड़ेगा व दलनों घुटनो में दर्द हो सकता है, लेकिन निरन्तर अभ्यास से यह दर्द दूर हो जाता है। इस आसन में निरन्तर अभ्यास से लम्बे समय तक आसानी से बैठा जा सकता है। यही एकमात्र ऐसा आसन है जिसे भोजन के उपरान्त भी किया जा सकता है। जिनके घुटनों में दर्द रहता है उनको यह आसन करना वर्जित है।
आसन के लाभ
मण्डूकासन
इस आसन को करते समय शरीर की आकृति मेंढक (मण्डूक) जैसी हो जाती है, इसीलिए इसे मण्डूकासन कहते है।
वज्रासन की स्थिति में बैठ जाइए। दायें हाथ की हथेली को नाभि के ऊपर लाकर रखें और बायें हाथ की हथेली को दाये हाथ पर रख दे। लम्बा व गहरा श्वास भरें। अब श्वास को बाहर छोड़ते हुए दोनों हाथों से पेट को अंदर दबाते हुए आगे की ओर झुक जाएं। दृष्टि को सामने की ओर रखें व यथासम्भव रूके। श्वास को भरते हुए पुनः बैठ जाइए।
अब बायें हाथ की हथेली को नाभि पर रखें और दायें हाथ की हथेली को बायें हाथ पर रख दें। श्वास को बाहर छोड़ते हुए आगे की ओर झुक जाएं व सामने की ओर देखें । यथासंभव रूकें। श्वास भरते हुए बजासन में बैठ जाएं।
आसन के लाभ
शशकासन
इस आसन को करते समय शरीर की आकृति खरगोश (शशक) जैसी हो जाती है इसलिए इसे शशकासन कहते हैं। वज्रासन की स्थिति में बैठते हुए मेरूदण्ड, गर्दन व सिर एक को रेखा में करते हुए सीधे बैठे। लम्बा व गहरा श्वास भरते हुए दोनों हाथों को सिर से ऊपर की ओर उठाइए व ऊपर आसमान की ओर देखे। अब धीरे-धीरे श्वास को बाहर छोड़ते हुए आगे की ओर झुकते हुए अपने माथे को भूमि से स्पर्श कर दे। दोनों हाथों को भी कोहनियों तक सिर से आगे की ओर भूमि पर इस प्रकार रखे कि हथेलियों नीचे भूमि की ओर रहे व भूमि को स्पर्श करें। यथाशक्ति रूके। उसके बाद श्वास को भरते हुए वापस वज्रासन में बैठ जाइए।
आसन के लाभ
सिंहासन
इस आसन में साधक का चेहरा शेर की भांति डरावना हो जाता है। इसी कारण इसे सिहासन कहा जाता है। चूंकि इस आसन में भैरव की तरह जीन बाहर होती है. इसलिए इसे भैरवासन भी कहा जाता है। यह आसन वज्रासन की स्थिति में बैठकर किया जाता है।
दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर पैरों को पीछे की ओर ले जाइये। अब दोनों पैरों के अंगूठे मिलाकर एडियों को एक दूसरे की विपरीत दिशा में इस प्रकार फैलाए कि ऐडियों की आकृति अंग्रेजी के अक्षर वी (V) की भांति लगे। दोनों घुटनों के बीच 15 इंच का अन्तर करे। दोनों हथेलियों सामने की और इस प्रकार रखें कि हाथों की अंगुलियों का रूख आपके शरीर की ओर रहे। अब लम्बा गहरा स्वास ले एवं शेर की भाँति महासते हुए श्वास को बाहर निकालते हुए जीम बाहर की और निकाल कर तुड्डी तक ले आएं। श्वास को बाहर की ओर रोककर रखें। आँखो को अधिक से अधिक खोलते हुए मुख के सभी स्नायु खीचकर रखें व अपने चेहरे को डरावना बनाइये 8 सैकण्ड तक इसी स्थिति में रू। उसके बाद धीरे-धीरे श्वास लेते हुए जीन को मुंह के अन्दर कर लीजिए। तीन-चार बार इस क्रिया को दोहराये। इसके बाद दोनों घुटनों को आपस में मिलाये व आँखें बन्द करें। दोनों हथेलियों को आपस में घर्षण द्वारा गर्म करें। इस समय आपके मुँह में जो लार है उसे निगलते हुए गर्म-गर्म हथेलियों से अपने गले की मालिश करें।
आसन के लाभ
उष्ट्रासन
यह आसन भी वज्रासन को स्थिति में बैठकर किया जाता है। उष्ट्र का तात्पर्य ऊँट से होता है। चूंकि इस आसन को करते समय शरीर को ऊँट की भाँति मोड लिया जाता है, इसी कारण इस आसन को उष्ट्रासन कहा जाता है।
सर्वप्रथम पूर्व मे बताए अनुसार वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाइये। अब घुटनों के बल इस प्रकार खड़े हो जाए कि दोनों घुटनों के बीच कंधों के समान अन्तर हो जाए व दोनों ऐडियों के बीच भी उतना ही अन्तर रखें। दोनों हथेलियों को कमर पर इस प्रकार रखें कि अंगुलियों पेट की ओर व अंगूठे पीठ की ओर हो जायें। अब धीरे- धीरे गर्दन को पीछे की ओर मोड़ते हुए दोनों हाथों को दोनों तल पैर पर लाकर रखे। गर्दन को पीछे की ओर ढीला छोड़ते हुए पेट एवं वक्षस्थल को सामने की ओर इस प्रकार तानें कि शरीर की आकृति धनुष जैसी हो जावे या अपने शरीर की आकृति को अंग्रेजी के अक्षर 'D' के अनुसार बना लीजिए। श्वास को भरते हुए इस आसन को शुरू करें। कुल 10 सैकण्ड इस गुदा में सकने के बाद श्वास को धोको हुए बजासन की मुद्रा मे बैठ जाइये।
आसन के लाभ
अर्धचन्द्रासन
अर्ध चन्द्रासन को करने के लिए सबसे पहले वज्रासन में बैठें और इसके बाद घुटनों के बल पर खड़े हो जाए। दायां हाथ बायीं भुजा पर और बायां हाथ दायी भुजा पर रखें। अब श्वास को भरते हुए अपनी कमर को पीछे की ओर मोडते हुए गर्दन व सिर को पीछे ढीला छोड दीजिए तथा अपने शरीर की आकृति को आधे चन्द्रमा की भाँति बना लीजिए। श्वास को भीतर की ओर रोकते हुए सरलता से रुकें। उसके बाद वापस सिर व गर्दन को सीधा करें। श्वास को बाहर छोड़ते हुए वज्रासन में बैठ जाइये।
सावधानी- नए साधक ज्यादा देर या जबरदस्ती नही करें अन्यथा चक्कर आ सकते हैं।
आसन के लाभ
सुप्त वज्रासन
इस आसन में वज्रासन की मुद्रा में लेटा जाता है। इसीलिए इस आसन को सुप्त वज्रासन कहा जाता है। सर्वप्रथम बजासन की मुद्रा में बैठ जाइये अब पहले बायीं हथेली को धरती से स्पर्श करे। फिर बायीं कोहनी का सहारा लेते हुए पीछे की ओर लेटें। इसी प्रकार दांयी हथेली को धरती से स्पर्श करते हुए पूरी तरह लेट जाइये। दोनों घुटनों को आपस में मिलाकर धरती से स्पर्श कर दीजिए। गर्दन को बिल्कुल सीधा रखते हुए दोनों हथेलियों को तानकर जंघाओं पर लाकर रखें। सिर गर्दन व पीठ को पूर्णतः भूमि से स्पर्श करा दीजिए। इस आसन में श्वास को सामान्य गति से लेते व छोड़ते रहें।
आसन के लाभ
शीर्षासन
इस आसन को करते समय शरीर शीर्ष अर्थात सिर के बल पर सीधा खड़ा रहता है, इसीलिए इसे शीर्षासन तथा समस्त आसनों का राजा कहा जाता है। किसी सूती वस्त्र को गोलाकार इस प्रकार लपेटे कि यह गद्दीनुमा बन जाऐं। दोनों हाथों की अंगुलियों को परस्पर आपस में फंसाकर उनका ग्रिप बनाएं और कोहनियों तक हाथों को धरती पर लाकर रख दें। गद्दी को हाथों की ग्रिप के नीचे लगा दें। घुटनों के बल बढ़ते हुये अपने सिर का ऊपरी हिस्सा हथेलियों पर लाकर रखें। अब धीरे-धीरे घुटनों को ऊपर की ओर उठा लें। इसके बाद धीरे-धीरे पैरों को सीधा करते हुये सिर के बल पर शरीर को बिल्कुल सीधा कर लें। आँखे बंद रखे श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया को सामान्य रखते हुये यथा संभव रुके। वापस पूर्वावस्था में आने के लिये पैरों को घुटने से मोडते हुये ऐडियो को नितम्ब से सटा दे। इसके बाद घुटनों को उदर के साथ सटा दें और पैरों को धरती पर लाकर रखें।
आसन के तुरंत बाद शवासन की स्थिति में विश्राम करें या बिल्कुल सीधे खड़े हो जाये ताकि रक्त प्रवाह पुन सामान्य हो सकें।
सावधानी
आसन के लाभ
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